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वो तितली की तरह आयी और ज़िन्दगी को बाग कर गयी मेरे जितने भी नापाक थे इरादे, उन्हें भी पाक कर गयी। माना की तुमको भी इश्क़ का तजुर्बा...
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राज़ जो कुछ हो इशारों में बता देना हाथ जब उससे मिलाओ दबा भी देना नशा वेसे तो बुरी शे है, मगर “राहत” से सुननी हो तो थोड़ी सी पिला...
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Poetry Bus Ka Intezaar Karte Hue, Metro Mein Khade Khade Rikshaw Me Baithe Hue Gehre Shunya Me Kya Dekhte Rehte Ho? Gumm Sa Chehra Liy...
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मन जहां डर से परे है “मन जहां डर से परे है और सिर जहां ऊंचा है; ज्ञान जहां मुक्त है और जहां दुनिया को संकीर्ण घरेलू दीवारों से छ...
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Zakir Khan Shayari Qayamat Mere kuch sawaal hai jo sirf Qayamatt ke roj puchhunga tumse, Kyuki uske pehle tumhari aur meri baa...
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बहुत मुश्किल से करता हूँ, तेरी यादों का कारोबार, मुनाफा कम है, पर गुज़ारा हो ही जाता है
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Meri Dastan Mera Sab bura bhi kehna, Par aacha bhi sab batana. Mai jau duniya se toh sabko Meri dastaan sunana. yeh bhi Batana Ki ka...
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इश्क़ को मासूम रहने दो , नोटबुक के आखरी पन्ने पर, आप उससे किताबों में डाल के मुश्किल न कीजिये… रफ़ीक़ों से रक़ीब अच्छे जो जल कर ना...
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हर कदम हर पल हम आपके साथ है, भले ही आपसे दूर सही, लेकिन आपके पास हैं, जिंदगी में हम कभी आपके हो या न हों, लेकिन हमे आपकी कमी का हर प...
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Zakir Khan Poetry Shunya – मैं शून्य पे सवार हूँ बेअदब सा मैं खुमार हूँ अब मुश्किलों से क्या डरूं मैं खुद कहर हज़ार हूँ मैं शून्य पे ...
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