सुकून-ए-ज़िंदगी
रुई का गद्दा बेच कर.. मैंने इक दरी खरीद ली,
ख्वाहिशों को कुछ कम किया मैंने और ख़ुशी खरीद ली..
सबने ख़रीदा सोना..मैने इक सुई खरीद ली,
सपनो को बुनने जितनी डोरी ख़रीद ली..
मेरी एक खवाहिश मुझसे मेरे दोस्त ने खरीद ली,
फिर उसकी हंसी से मैंने अपनी कुछ और ख़ुशी खरीद ली..
इस ज़माने से सौदा कर.. एक ज़िन्दगी खरीद ली,
दिनों को बेचा और शामें खरीद ली..
शौक-ए-ज़िन्दगी कमतर से और कुछ कम किये,
फ़िर सस्ते में ही “सुकून-ए-ज़िंदगी” खरीद ली!
-Unknown.
मुकद्दर खुद बनाता हूँ...
मुसीबत के साये में मैं हँसता-हँसाता हूँ,
ग़मों से उलझ कर भी मैं मुस्कराता हूँ,
हाथों में मुकद्दर की लकीरें है नहीं लेकिन,
मैं तो अपना मुकद्दर खुद बनाता हूँ।
ग़मों से उलझ कर भी मैं मुस्कराता हूँ,
हाथों में मुकद्दर की लकीरें है नहीं लेकिन,
मैं तो अपना मुकद्दर खुद बनाता हूँ।
-Unknown.
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