अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार
बिना टिकट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर 
जहाँ ‘मूड' आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर 
खींच लई ज़ंजीर, बने गुंडों के नक्कू 
पकड़ें टी. टी. गार्ड, उन्हें दिखलाते चक्कू 
गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार बढ़ा दिन-दूना 
प्रजातंत्र की स्वतंत्रता का देख नमूना 

भ्रष्टाचार
राशन की दुकान पर, देख भयंकर भीर 
‘क्यू' में धक्का मारकर, पहुँच गये बलवीर 
पहुँच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला 
खड़े रह गये निर्बल, बूढ़े, बच्चे, महिला 
कहँ ‘काका' कवि, करके बंद धरम का काँटा 
लाला बोले - भागो, खत्म हो गया आटा 

घूस माहात्म्य
कभी घूस खाई नहीं, किया न भ्रष्टाचार
ऐसे भोंदू जीव को बार-बार धिक्कार
बार-बार धिक्कार, व्यर्थ है वह व्यापारी
माल तोलते समय न जिसने डंडी मारी
कहँ 'काका', क्या नाम पायेगा ऐसा बंदा
जिसने किसी संस्था का, न पचाया चंदा

रचनाकार:

 काका हाथरसी | Kaka Hathrasi