जो अगणित लघु दीप हमारे,
तूफ़ानों में एक किनारे, जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन, मांगा नहीं स्नेह मुँह खोल। कलम, आज उनकी जय बोल। पीकर जिनकी लाल शिखाएं, उगल रही सौ लपट दिशाएं, जिनके सिंहनाद से सहमी, धरती रही अभी तक डोल। कलम, आज उनकी जय बोल। अंधा चकाचौंध का मारा, क्या जाने इतिहास बेचारा, साखी हैं उनकी महिमा के, सूर्य, चन्द्र, भूगोल, खगोल। कलम, आज उनकी जय बोल।
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आज फिर
किसी का गम, अपना बनाने को जी करता है,
किसी को दिल में, बिठाने को जी करता है,
आज दिल को क्या हुआ, खुदा जाने,
बुझती हुई शमा, फिर जलाने को जी करता है,
आफतों ने, जर्जर कर दिया घर मेरा,
उसकी दरोदीवार, फिर सजाने को जी करता है,
एक मुद्दत गुज़री, जिसका साथ छूटा,
आज फिर, उसका साथ पाने को जी करता है!
-Unknown.
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