दिन पर दिन चले गए, पंथ के किनारे
दिन पर दिन चले गए, पंथ के किनारे
गीतों पर गीत, अरे रहता पसरे||
बीतती नहीं बेला, सुर में उठाता |
जोड़-जोड़ सपनों से उनको मैं गाता ||
दिन पर दिन जाते में बैठा एकाकी |
जोह रहा बाट, अभी मिलना तो बाकी ||
चाहो क्या, रुकूँ नहीं, रहूँ सदा गाता |
करता जको प्रीत, अरे, व्यथा वही पाता||
–रबिन्द्रनाथ टैगोर–
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