एक-एक कर

एक-एक कर अपने
खोलो तार पुराने, खोलो तार पुराने
साधो यह सितार, बाँधकर नए तार.

खत्‍म हो गया दिन का मेला
सभा जुड़ेगी संध्‍या बेला
अंतिम सुर जो छेड़ेगा, उसके
आने की यह आ गई बेला--
साधो यह सितार, बाँधकर नए तार.

द्वार खोल दो अपने हे
अंधेरे आकाश के ऊपर से
सात लोकों की नीरवता
आए तुम्‍हारे घर में.

इतने दिनों तक गाया जो गान
आज हो जाए उसका अवसान
यह साज है तुम्‍हारा साज
इस बात को ही दो बिसार
साधो यह सितार, बाँधकर नए तार.

–रबिन्द्रनाथ टैगोर–