मन में है बसा वही मधुर मुख

मन में है बसा वही मधुर मुख ।
जागूँ या देखूँ मैं सपना, लगे वही अपना ।।
जीवन में भूलूँगा कभी नहीं ।
जानो या जानो न तुम ।।
मन में है बजे सदा वही मधुर बाँसुरी ।
मन में जो बसे तुम ।
बता नहीं पाऊँ ।
इन कातर नयनों में वही रखूँ सनमुख ।।

–रबिन्द्रनाथ टैगोर–