ओ री, आम्र मंजरी, ओ री, आम्र मंजरी
ओ री, आम्र मंजरी, ओ री, आम्र मंजरी
क्या हुआ उदास हृदय क्यों झरी ।।
गंध में तुम्हारी धुला मेरा गान
दिशि-दिशि में गूँज उसी की तिरी ।।
डाल-डाल उतरी है पूर्णिमा,
गंध में तुम्हारी, मिली आज चन्द्रिमा ।।
दौड़ रही पागल हो दखिन वातास,
तोड़ रही अर्गला,
इधर गई, उधर गई,
चहुँदिश है वो फिरी ।।
क्या हुआ उदास हृदय क्यों झरी ।।
गंध में तुम्हारी धुला मेरा गान
दिशि-दिशि में गूँज उसी की तिरी ।।
डाल-डाल उतरी है पूर्णिमा,
गंध में तुम्हारी, मिली आज चन्द्रिमा ।।
दौड़ रही पागल हो दखिन वातास,
तोड़ रही अर्गला,
इधर गई, उधर गई,
चहुँदिश है वो फिरी ।।
–रबिन्द्रनाथ टैगोर–
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