तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।


तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।
आओ, गंधों में, वर्णों में, गानों में आओ।

आओ अंगों के पुलक भरे स्पर्श में आओ,
आओ अंतर के अमृतमय हर्ष में आओ,
आओ मुग्ध मुदित इन नयनों में आओ,
तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।

आओ निर्मल उज्ज्वल कांत
आओ सुंदर स्निग्ध प्रशांत
आओ विविध विधानों में आओ।

आओ सुख-दुख में, आओ मर्म में,
आओ नित्य नैमेत्तिक कर्म में,
आओ सभी कर्मों के अवसान में
तुम नए-नए रूपों में, प्राणों में आओ।

–रबिन्द्रनाथ टैगोर–