मुझे झुका दो,मुझे झुका दो
मुझे झुका दो,मुझे झुका दो
अपने चरण तल में,
करो मन विगलित, जीवन विसर्जित
नयन जल में.
अकेली हूँ मैं अहंकार के
उच्च शिखर पर-
माटी कर दो पथरीला आसन,
तोड़ो बलपूर्वक.
मुझे झुका दो,मुझे झुका दो
अपने चरण तल में,
किस पर अभिमान करूँ
व्यर्थ जीवन में
भरे घर में शून्य हूँ मैं
बिन तुम्हारे.
दिनभर का कर्म डूबा मेरा
अतल में अहं की,
सांध्य-वेला की पूजा भी
हो न जाए विफल कहीं.
मुझे झुका दो,मुझे झुका दो
अपने चरण तल में.
अपने चरण तल में,
करो मन विगलित, जीवन विसर्जित
नयन जल में.
अकेली हूँ मैं अहंकार के
उच्च शिखर पर-
माटी कर दो पथरीला आसन,
तोड़ो बलपूर्वक.
मुझे झुका दो,मुझे झुका दो
अपने चरण तल में,
किस पर अभिमान करूँ
व्यर्थ जीवन में
भरे घर में शून्य हूँ मैं
बिन तुम्हारे.
दिनभर का कर्म डूबा मेरा
अतल में अहं की,
सांध्य-वेला की पूजा भी
हो न जाए विफल कहीं.
मुझे झुका दो,मुझे झुका दो
अपने चरण तल में.
–रबिन्द्रनाथ टैगोर–
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