आज जागी क्यों मर्मर-ध्वनि !

आज जागी क्यों मर्मर-ध्वनि !
पल्लव पल्लव में मेरे हिल्लोल,
हुआ घर-घर अरे कंपन ।।
कौन आया ये द्वारे भिखारी,
माँग उसने लिए मन-धन ।।
जाने उसको मेरा यह हृदय,
उसके गानों से फूटें कुसुम ।
आज अंतर में बजती मेरे,
उस पथिक की-सी बजती है ध्वनि ।।
नींद टूटी, चकित चितवन । 


–रबिन्द्रनाथ टैगोर–