खोलो यह तिमिर-द्वार

खोलो यह तिमिर द्वार रखतीं नीरव चरण आओ ।
ओ ! जननी सनमुख हो, अरुण अरुण किरणों में आओ ।।
पुण्य परस से पुलकित आलस सब भागे ।
बजे गगन में वीणा जगती यह जागे ।।
जीवन हो तृप्त मिले सुधा-रस तुम्हारा ।
जननी ओ ! हो सनमुख, ज्योति चकित नयनों में
आओ, समाओ ।।

–रबिन्द्रनाथ टैगोर–