किसका आघात हुआ फिर मेरे द्वार 


किसका आघात हुआ फिर मेरे द्वार ।
कौन, कौन इस निशीथ खोज रहा है किसको—
आज बार-बार ।।
बीत गए कितने दिन,
आया था वह अतिथि नवीन,
दिन था वह वासन्ती—
जीवन कर गया मगन
पुलक भरी तन-मन में—
फिर हुआ विलीन ।।
झर-झर-झर झरती बरसात ।
छाया है तिमिर आज रात ।।
अतिथि वह अजाना है
लगते पर बड़े मधुर,
उसके सब गीत-सुर ।।
सोच रहा जाऊँगा मैं उसके साथ—
अनजाने इस असीम अंधकार ।।

–रबिन्द्रनाथ टैगोर–