उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर मंतर सब
उसकी कत्थई आँखों में हैं जंतर मंतर सब
चाक़ू वाक़ू, छुरियां वुरियां, ख़ंजर वंजर सब
जिस दिन से तुम रूठीं,मुझ से, रूठे रूठे हैं
चादर वादर, तकिया वकिया, बिस्तर विस्तर सब
मुझसे बिछड़ कर, वह भी कहां अब पहले जैसी है
फीके पड़ गए कपड़े वपड़े, ज़ेवर वेवर सब
जाने मैं किस दिन डूबूँगा, फिक्रें करते हैं
दरिया वरीया, कश्ती वस्ती, लंगर वंगर सब
इश्क़ विश्क़ के सारे नुस्खे, मुझसे सीखते हैं
सागर वागर, मंज़र वंजर, जोहर वोहर सब
तुलसी ने जो लिखा अब कुछ बदला बदला हैं
रावण वावण, लंका वंका, बन्दर वंदर सब
राहत इन्दौरी
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